CAFE 3 ड्राफ्ट जारी: छोटी कारों को राहत, EVs और हाइब्रिड्स को मिलेगा बड़ा बढ़ावा

भारत सरकार ने वर्ष 2027 से 2032 तक लागू होने वाले नए ईंधन दक्षता मानकों के लिए कॉरपोरेट एवरेज फ्यूल एफिशिएंसी (CAFE) 3 ड्राफ्ट जारी कर दिया है। यह नया प्रस्ताव वाहन निर्माताओं के लिए अधिक कड़े फ्लीट वाइड फ्यूल एफिशिएंसी लक्ष्य तय करता है, लेकिन साथ ही छोटी पेट्रोल कारों के लिए कुछ छूट और इलेक्ट्रिक व हाइब्रिड वाहनों को प्रोत्साहन देने के उपाय भी शामिल करता है। इसका उद्देश्य है भारत के यात्री वाहनों को ज्यादा ऊर्जा कुशल और पर्यावरण अनुकूल बनाना, साथ ही कार्बन उत्सर्जन को धीरे-धीरे कम करना। कड़ाई से तय होंगे औसत ईंधन दक्षता लक्ष्य CAFE 3 ड्राफ्ट के तहत प्रत्येक वाहन निर्माता की फ्लीट की औसत मास (वजन) के अनुसार लक्ष्य तय किया जाएगा। हल्के वाहनों के लिए लक्ष्य ज्यादा सख्त होंगे, जबकि भारी फ्लीट्स को थोड़ी छूट मिलेगी। पर यह छूट सीमित रहेगी क्योंकि हर वित्तीय वर्ष (2028 से 2032 तक) में मानक और कड़े होते जाएंगे। यह बदलाव इसलिए किया जा रहा है ताकि कंपनियां किसी एक मॉडल को नहीं, बल्कि पूरे फ्लीट को कुशल बनाएं। ड्राफ्ट में CO उत्सर्जन लक्ष्य को तय करने के लिए एक नया गणितीय फॉर्मूला शामिल किया गया है: Target = 0.002 (W – 1170) + c, जहां W का मतलब फ्लीट का औसत वजन है और c एक कॉन्स्टैंट है, जो हर साल कम किया जाएगा। इसका मतलब है कि हर साल नियमों पर खरा उतरना और मुश्किल होता जाएगा। छोटी पेट्रोल कारों को राहत सरकार ने स्वीकार किया है कि छोटी कारों में ईंधन दक्षता बढ़ाने की गुंजाइश सीमित होती है। इसलिए, ऐसी कारें जो 4 मीटर से छोटी हों, 909 किलो से कम वजनी हों और 1,200cc से कम इंजन क्षमता वाली हों, उन्हें अतिरिक्त 3 ग्राम/किमी CO डिडक्शन की छूट दी जाएगी। हालांकि, यह छूट सालाना प्रति निर्माता 9 ग्राम/किमी तक सीमित रहेगी। ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए क्रेडिट मल्टीप्लायर सिस्टम ड्राफ्ट में एक नया क्रेडिट सिस्टम पेश किया गया है, जिसमें हर ग्रीन टेक्नोलॉजी वाले वाहन को औसत में ज्यादा वेटेज मिलेगा: —बैटरी इलेक्ट्रिक व रेंज एक्सटेंडर EVs: 1 की जगह 3 गिने जाएंगे —प्लग-इन हाइब्रिड्स व एथनॉल आधारित स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड्स: 2.5 के बराबर —स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड्स: 2 वाहनों के बराबर —फ्लेक्स फ्यूल एथनॉल कार्स: 1.5 वाहन के बराबर इससे कंपनियों को अपने फ्लीट औसत सुधारने में आसानी होगी, भले ही EVs की बिक्री सीमित संख्या में हो। कार्बन न्यूट्रैलिटी फैक्टर्स से घटेगी रिपोर्टेड उत्सर्जन मात्रा सरकार ने कुछ फ्यूल टाइप्स के लिए कार्बन न्यूट्रैलिटी फैक्टर्स प्रस्तावित किए हैं, जिससे कंपनियों की रिपोर्टेड उत्सर्जन मात्रा कम मानी जाएगी: —पेट्रोल (E20–E30 ब्लेंड): 8% की छूट —फ्लेक्स-फ्यूल एथनॉल और स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड्स: 22.3% छूट —CNG गाड़ियां: 5% या उससे अधिक (बायोगैस ब्लेंडिंग पर निर्भर) वहीं, डीजल वाहनों पर सख्ती बढ़ाई गई है। उनके उत्सर्जन को पेट्रोल समकक्ष में बदलकर देखा जाएगा, जिससे वे तुलनात्मक रूप से कम कुशल नजर आएंगे। कम्प्लायंस और पेनल्टी का कड़ा ढांचा अप्रैल 2026 से सभी वाहन निर्माताओं को अपने मॉडलों के लिए Modified Indian Driving Cycle (MIDC) और Worldwide Harmonized Light Vehicles Test Procedure (WLTP) के तहत डेटा जमा करना अनिवार्य होगा। भविष्य में WLTP को पूरी तरह लागू किया जाएगा। नियमों की निगरानी सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) और ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा की जाएगी। यदि कोई निर्माता अपने फ्लीट औसत लक्ष्य से चूकता है, तो उस पर Energy Conservation Act, 2001 के तहत जुर्माना लगाया जाएगा, जो हर वाहन के प्रति ग्राम/किमी की औसत उत्सर्जन सीमा के उल्लंघन के आधार पर होगा। बड़े निर्माताओं के लिए यह जुर्माना सैकड़ों करोड़ में जा सकता है। निर्माताओं के लिए लचीलापन भी शामिल सरकार ने ट्रांजिशन को आसान बनाने के लिए कुछ लचीलापन भी दिया है। तीन तक कंपनियां आपस में जुड़कर एक कॉम्प्लायंस पूल बना सकती हैं, जिसे एक इकाई माना जाएगा। वहीं, जो निर्माता सालाना 1,000 से कम यूनिट्स बनाते हैं, उन्हें इन मानकों से छूट दी गई है। अब सुझावों का इंतजार यह ड्राफ्ट ऑटो इंडस्ट्री की बड़ी संस्थाओं और वाहन निर्माताओं को भेजा गया है। फीडबैक देने की अंतिम तारीख 16 अक्टूबर 2025 तय की गई है। इसके बाद सरकार फाइनल नियमों की अधिसूचना जारी करेगी, जो भारत की ग्रीन मोबिलिटी की दिशा तय करेंगे।